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भगवद गीता: अध्याय 5, श्लोक 20

न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् ।
स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः ॥20॥


न–कभी नहीं; प्रहृष्येत्-हर्षित होना; प्रियम्-परम सुखदः प्राप्य प्राप्त करना; न-नहीं; उद्विजेत्–विचलित होना; प्राप्य–प्राप्त करके; च-भी; अप्रियम्-दुखद; स्थिरबुद्धिः-दृढ़ बुद्धि, असम्मूढः-पूर्णतया स्थित, संशयरहित; ब्रह्म-वित्-दिव्य ज्ञान का बोध; ब्रह्मणि-भगवान में; स्थित:-स्थित।

Hindi translation: परमात्मा में स्थित होकर, दिव्य ज्ञान में दृढ़ विश्वास धारण कर और मोह रहित होकर वे सुखद पदार्थ पाकर न तो हर्षित होते हैं और न ही अप्रिय स्थिति में दुखी होते हैं।

जीवन की समता: सुख और दुःख में संतुलन का मार्ग

परिचय

जीवन एक अद्भुत यात्रा है, जिसमें सुख और दुःख के अनगिनत पल समाहित हैं। हम अक्सर इन क्षणों में उलझ जाते हैं, कभी आनंद में डूबकर तो कभी शोक में विलीन होकर। लेकिन क्या यह जीवन जीने का सही तरीका है? क्या हमें हर परिस्थिति में समान भाव रखना चाहिए? आइए, इस गहन विषय पर विस्तार से चर्चा करें।

समता का अर्थ और महत्व

समता क्या है?

समता का अर्थ है संतुलन या समानता। यह एक ऐसी मानसिक स्थिति है जहाँ व्यक्ति सुख और दुःख दोनों परिस्थितियों में समान भाव रखता है। यह न तो अत्यधिक प्रसन्नता है और न ही गहन शोक, बल्कि एक मध्यम मार्ग है।

समता का महत्व

समता जीवन में स्थिरता लाती है। यह हमें भावनात्मक उतार-चढ़ाव से बचाती है और मानसिक शांति प्रदान करती है। समता से हम:

  1. बेहतर निर्णय ले सकते हैं
  2. तनाव को कम कर सकते हैं
  3. संबंधों में सुधार कर सकते हैं
  4. आत्म-जागरूकता बढ़ा सकते हैं

विभिन्न धर्मों और दर्शनों में समता का स्थान

बौद्ध धर्म में समता

बौद्ध धर्म में समता को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। विपस्सना, जो कि बौद्ध साधना पद्धति है, इसी समता के सिद्धांत पर आधारित है। बुद्ध ने कहा था:

“न तो सुख में प्रसन्न होना और न ही दुख में शोक करना”

यह वाक्य समता का सार है। बौद्ध साधक इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए कठोर प्रशिक्षण लेते हैं।

हिंदू धर्म में समता

हिंदू धर्म में भी समता को उच्च स्थान दिया गया है। भगवद्गीता में कृष्ण अर्जुन को समता का महत्व समझाते हैं:

“सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ”

अर्थात्, सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय को समान समझना चाहिए।

अन्य धर्मों में समता

इस्लाम, ईसाई धर्म और सिख धर्म जैसे अन्य धर्मों में भी समता के सिद्धांत को महत्वपूर्ण माना गया है। सभी धर्म अपने अनुयायियों को जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में संतुलित रहने की शिक्षा देते हैं।

समता प्राप्त करने के उपाय

1. ध्यान और योग

नियमित ध्यान और योग अभ्यास से मन को शांत और स्थिर किया जा सकता है। यह समता प्राप्त करने का एक प्रभावी तरीका है।

2. प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना

जीवन में आने वाली चुनौतियों का डटकर सामना करें। इससे आपकी मानसिक दृढ़ता बढ़ेगी और आप धीरे-धीरे समता की ओर बढ़ेंगे।

3. सकारात्मक दृष्टिकोण

हर परिस्थिति में कुछ न कुछ सीखने की संभावना देखें। यह दृष्टिकोण आपको संतुलित रहने में मदद करेगा।

4. भक्ति और आत्मसमर्पण

भगवान में विश्वास और उनके प्रति समर्पण भाव रखने से भी समता प्राप्त की जा सकती है।

समता के लाभ

क्षेत्रलाभ
मानसिक स्वास्थ्यतनाव में कमी, बेहतर मनोदशा
शारीरिक स्वास्थ्यरक्तचाप नियंत्रण, बेहतर नींद
संबंधगहरे और अर्थपूर्ण संबंध
कार्य क्षमताबेहतर निर्णय क्षमता, उच्च उत्पादकता

समता के मार्ग में आने वाली बाधाएँ

1. अहंकार

अहंकार हमें दूसरों से अलग और श्रेष्ठ समझने की भावना देता है। यह समता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है।

2. अज्ञान

जीवन के वास्तविक उद्देश्य और आत्मज्ञान का अभाव भी समता प्राप्त करने में बाधक बनता है।

3. आसक्ति

वस्तुओं, व्यक्तियों या परिणामों के प्रति अत्यधिक लगाव समता को बाधित करता है।

4. भय

अज्ञात या परिवर्तन का भय हमें समता से दूर रखता है।

समता की कहानियाँ

किसान और घोड़े की कहानी

एक बार की बात है, एक बुद्धिमान किसान के पास एक घोड़ा आया। उसके पड़ोसियों ने उसे बधाई दी, लेकिन किसान ने कहा, “कौन जानता है यह अच्छा है या बुरा।” कुछ दिनों बाद, वह घोड़ा भाग गया। लोगों ने किसान को सांत्वना दी, लेकिन उसने फिर कहा, “कौन जानता है यह अच्छा है या बुरा।”

एक सप्ताह बाद, वह घोड़ा कई जंगली घोड़ों के साथ लौट आया। लोगों ने फिर किसान को बधाई दी, लेकिन उसने अपनी बात दोहराई। कुछ दिनों बाद, किसान का बेटा एक घोड़े को साधने की कोशिश में गिर गया और उसका पैर टूट गया। लोगों ने शोक व्यक्त किया, लेकिन किसान ने फिर वही कहा।

अंत में, जब युद्ध छिड़ा और सैनिक युवाओं को भर्ती करने आए, तो किसान के बेटे को उसके टूटे पैर के कारण छोड़ दिया गया। इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि हर घटना को न तो पूरी तरह अच्छा और न ही पूरी तरह बुरा समझना चाहिए।

बुद्ध और अंगुलिमाल की कहानी

अंगुलिमाल एक खूंखार डाकू था जो लोगों को मारकर उनकी अंगुलियों की माला पहनता था। एक दिन वह बुद्ध को मारने के लिए दौड़ा। बुद्ध शांति से चलते रहे। अंगुलिमाल ने आश्चर्य से पूछा कि वे क्यों नहीं भाग रहे। बुद्ध ने कहा, “मैं पहले ही रुक चुका हूँ, तुम्हें रुकना चाहिए।”

इस उत्तर ने अंगुलिमाल को चकित कर दिया। बुद्ध ने उसे समझाया कि वह हिंसा और क्रोध में भटक रहा है, जबकि बुद्ध शांति और करुणा में स्थिर हैं। यह सुनकर अंगुलिमाल का हृदय परिवर्तित हो गया और वह बुद्ध का शिष्य बन गया।

समता का व्यावहारिक अभ्यास

1. दैनिक जीवन में समता

2. कार्यस्थल पर समता

3. पारिवारिक जीवन में समता

4. सामाजिक जीवन में समता

निष्कर्ष

समता जीवन जीने की एक कला है। यह हमें सुख और दुःख के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करती है। समता का अभ्यास न केवल हमारे व्यक्तिगत जीवन को बेहतर बनाता है, बल्कि एक शांतिपूर्ण और सद्भावपूर्ण समाज के निर्माण में भी योगदान देता है।

याद रखें, समता एक दिन में प्राप्त नहीं होती। यह एक लंबी यात्रा है जिसमें धैर्य, दृढ़ संकल्प और निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होती है। लेकिन जैसे-जैसे आप इस मार्ग पर आगे बढ़ते हैं, आप पाएंगे कि आपका जीवन अधिक संतुलित, शांतिपूर्ण और आनंदमय हो रहा है।

अंत में, महात्मा गांधी के इन शब्दों को याद रखें:

“आप जो परिवर्तन दुनिया में देखना चाहते हैं, वह खुद बनिए।”

समता का मार्ग चुनकर, आप न केवल अपने जीवन को बदल सकते हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी एक प्रेरणा बन सकते हैं। आइए, हम सब मिलकर एक ऐसे समाज का निर्माण करें जहाँ समता और शांति का बोलबाला हो।

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