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भगवद गीता: अध्याय 5, श्लोक 24

योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्योतिरेव यः।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ॥24॥

https://www.holy-bhagavad-gita.org/public/audio/005_024.mp3यः-जो; अन्त:-सुखः-अपनी अन्तरात्मा में सुखी; अन्त:-आरामः-आत्मिक आनन्द में अन्तर्मुखी; तथा उसी प्रकार से; अन्तः-ज्योतिः-आंतरिक प्रकाश से प्रकाशित; यः-जो; स:-वह; योगी-योगी; ब्रह्म-निर्वाणं-भौतिक जीवन से मुक्ति; ब्रह्म-भूतः-भगवान में एकनिष्ठ; अधिगच्छति–प्राप्त करना।

Hindi translation: जो अन्तर्मुखी होकर सुख का अनुभव करते हैं वे भगवान को प्रसन्न करने में ही आनन्द पाते हैं और आत्मिक प्रकाश से प्रकाशित रहते हैं। ऐसे योगी भगवान में एकीकृत हो जाते हैं और भौतिक जीवन से मुक्त हो जाते हैं। आंतरिक प्रकाश दिव्य ज्ञान है जो भगवान की कृपा द्वारा हमारे भीतर अनुभूति के रूप में तब प्रकट होता है जब हम भगवान के शरणागत हो जाते हैं।

आंतरिक प्रकाश और दिव्य ज्ञान: आत्मानुभूति की यात्रा

प्रस्तावना

जीवन की भागदौड़ में, हम अक्सर अपने अंदर छिपे हुए असीम ज्ञान और शक्ति को भूल जाते हैं। यह आंतरिक प्रकाश, जो हमारे अस्तित्व का मूल है, हमारी आत्मा का सार है। आइए इस रहस्यमय और शक्तिशाली अवधारणा को समझने का प्रयास करें।

आंतरिक प्रकाश क्या है?

परिभाषा और महत्व

आंतरिक प्रकाश वह दिव्य ज्ञान है जो भगवान की कृपा से हमारे अंतर्मन में प्रकट होता है। यह एक ऐसी अनुभूति है जो तब होती है जब हम पूर्ण रूप से भगवान के शरणागत हो जाते हैं। यह प्रकाश हमारे जीवन को नई दिशा और अर्थ प्रदान करता है, हमें अपने सच्चे स्वरूप से परिचित कराता है।

योगदर्शन का दृष्टिकोण

योगदर्शन में इस अवस्था का सुंदर वर्णन मिलता है:

ऋतम्भरा तत्र प्रज्ञा ॥
(योगदर्शन-1.48)

इसका अर्थ है कि समाधि की अवस्था में मनुष्य की बुद्धि परम सत्य की अनुभूति में विलीन हो जाती है। यह वह स्थिति है जहाँ बाहरी ज्ञान और आंतरिक अनुभव एक हो जाते हैं, जहाँ व्यक्ति और ब्रह्मांड के बीच की दीवार टूट जाती है।

श्रीकृष्ण का उपदेश: आंतरिक सुख की खोज

कामना और क्रोध पर विजय

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सिखाया कि कामना और क्रोध के आवेग को सहन करना आवश्यक है। यह एक महत्वपूर्ण कदम है आंतरिक प्रकाश की ओर बढ़ने में। जब हम अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानते हैं, तो बाहरी प्रलोभन और क्रोध हमें प्रभावित नहीं कर पाते।

‘योऽन्तः सुखों’: आंतरिक प्रसन्नता का रहस्य

श्रीकृष्ण ने ‘योऽन्तः सुखों’ शब्द का प्रयोग किया, जिसका अर्थ है ‘जो आंतरिक रूप से प्रसन्न है’। यह एक गहन अवधारणा है जो बताती है कि सच्चा सुख बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर है। यह आंतरिक प्रसन्नता ही वह कुंजी है जो हमें दिव्य ज्ञान के द्वार तक ले जाती है।

बाह्य सुख बनाम आंतरिक आनंद

दो प्रकार की प्रसन्नता

  1. बाह्य पदार्थों से प्राप्त सुख: यह क्षणिक और अस्थायी होता है। यह वह सुख है जो हम भौतिक वस्तुओं, उपलब्धियों या मान्यताओं से प्राप्त करते हैं।
  2. भगवान में लीन होने से प्राप्त आनंद: यह स्थायी और गहन होता है। यह वह आनंद है जो हमारे अंतर्मन से उपजता है, जो हमारे अस्तित्व के मूल से जुड़ा होता है।

आंतरिक आनंद की श्रेष्ठता

जब हम भगवान के आनंद का अनुभव करते हैं, तो बाह्य लौकिक सुख तुच्छ प्रतीत होने लगते हैं। यह अनुभव हमें सांसारिक आसक्तियों से मुक्त होने में सहायता करता है। यह हमें एक ऐसी स्वतंत्रता प्रदान करता है जो किसी भी भौतिक उपलब्धि से प्राप्त नहीं की जा सकती।

संत यमुनाचार्य का अनुभव: एक प्रेरक उदाहरण

संत यमुनाचार्य ने अपने अनुभव को इस प्रकार व्यक्त किया है:

यदावधि मम चेतः कृष्णपदारविन्दे ।
नव नव रस धामनुद्यत रन्तुम् आसीत् ।।
तदावधि बत नारीसंगमे स्मर्यमाने ।
भवति मुखविकारः सुष्टु निष्ठीवनं च ।।

इसका अर्थ है कि जब से उन्होंने श्रीकृष्ण के चरणों का ध्यान करना आरंभ किया, तब से उन्हें नित्य नवीन और असीम आनंद की अनुभूति होने लगी। इस आनंद के सामने, सांसारिक काम-सुख के विचार मात्र से उन्हें घृणा होने लगी।

यह एक शक्तिशाली उदाहरण है कि कैसे आंतरिक प्रकाश हमारे दृष्टिकोण को पूरी तरह से बदल सकता है। यह हमें दिखाता है कि जब हम अपने अंदर के दिव्य ज्ञान को जगाते हैं, तो बाहरी दुनिया के आकर्षण अपना प्रभाव खो देते हैं।

आंतरिक प्रकाश की प्राप्ति का मार्ग

1. ध्यान और साधना

आंतरिक प्रकाश की प्राप्ति के लिए नियमित ध्यान और साधना आवश्यक है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें धैर्य और दृढ़ता की आवश्यकता होती है।

2. सत्संग का महत्व

सत्संग, अर्थात् सत्पुरुषों का संग, आंतरिक प्रकाश की प्राप्ति में सहायक होता है। यह हमें सही मार्गदर्शन प्रदान करता है और हमारे आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है।

3. निःस्वार्थ सेवा

दूसरों की निःस्वार्थ सेवा करना भी आंतरिक प्रकाश की प्राप्ति का एक प्रभावी मार्ग है। यह हमें अहंकार से मुक्त होने में सहायता करता है और हमारे हृदय को शुद्ध करता है।

4. स्वाध्याय

पवित्र ग्रंथों का अध्ययन और उन पर चिंतन करना हमारे मन को शुद्ध करता है और हमें गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

5. प्रकृति के साथ संबंध

प्रकृति के साथ समय बिताना, उसके सौंदर्य और विशालता का अनुभव करना हमें अपने अंदर के दिव्य ज्ञान से जोड़ता है।

आंतरिक प्रकाश के लाभ

लाभविवरण
मानसिक शांतिआंतरिक प्रकाश की अनुभूति से मन में गहन शांति का अनुभव होता है
जीवन का उद्देश्ययह हमें जीवन के वास्तविक उद्देश्य का बोध कराता है
आत्मविश्वासआंतरिक प्रकाश हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाता है
सकारात्मक दृष्टिकोणयह हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है
आध्यात्मिक उन्नतिआंतरिक प्रकाश हमारी आध्यात्मिक यात्रा को गति प्रदान करता है
भावनात्मक संतुलनयह हमें भावनात्मक रूप से स्थिर और संतुलित रहने में मदद करता है
अंतर्ज्ञानआंतरिक प्रकाश हमारे अंतर्ज्ञान को तेज करता है, जिससे हम बेहतर निर्णय ले सकते हैं

आंतरिक प्रकाश की यात्रा में चुनौतियाँ

आंतरिक प्रकाश की खोज एक सरल मार्ग नहीं है। इस यात्रा में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है:

  1. मन की चंचलता: हमारा मन स्वभाव से चंचल होता है। इसे एकाग्र करना एक बड़ी चुनौती हो सकती है।
  2. बाहरी प्रलोभन: संसार के आकर्षण हमें बार-बार अपनी ओर खींचते हैं। इनसे मुक्त होना कठिन हो सकता है।
  3. अहंकार: अपने अहं को पहचानना और उससे मुक्त होना एक जटिल प्रक्रिया है।
  4. अधैर्य: आंतरिक प्रकाश की अनुभूति समय लेती है। धैर्य रखना महत्वपूर्ण है।
  5. संदेह: कभी-कभी हम अपनी क्षमताओं या इस मार्ग की सच्चाई पर संदेह करने लगते हैं।

इन चुनौतियों से निपटने के लिए दृढ़ संकल्प, नियमित अभ्यास, और गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है।

आधुनिक जीवन में आंतरिक प्रकाश की प्रासंगिकता

आज के तनावपूर्ण और भागदौड़ भरे जीवन में, आंतरिक प्रकाश की खोज पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। यह हमें:

  1. तनाव और चिंता से मुक्ति दिलाता है।
  2. जीवन के प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करता है।
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