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भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 31

&NewLine;<pre id&equals;"tw-target-text" class&equals;"wp-block-preformatted"><br><strong>सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः।<br>सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते ॥31॥<&sol;strong><br><br>सर्व-भूत-सभी जीवों में स्थित&semi; यः-जो&semi; माम्-मुझको&semi; भजति–आराधना करता है&semi; एकत्वम्-एकीकृत&semi; अस्थितः-विकसित&semi; सर्वथा-सभी प्रकार से&semi; वर्तमान&colon;-करता हुआ&semi; अपि-भी&semi; सः-सह&semi; योगी-योगी&semi; मयि–मुझमें&semi; वर्तते-निवास करता है।<br><br><strong>Hindi translation&colon;<&sol;strong> जो योगी मुझमें एकनिष्ठ हो जाता है और परमात्मा के रूप में सभी प्राणियों में मुझे देखकर श्रद्धापूर्वक मेरी भक्ति करता है&comma; वह सभी प्रकार के कर्म करता हुआ भी केवल मुझमें स्थित हो जाता है।<&sol;pre>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h1 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भगव-न-क-सर-वव-य-पकत-एक-आध-य-त-म-क-पर-प-र-क-ष-य">भगवान की सर्वव्यापकता&colon; एक आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य<&sol;h1>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-प-रस-त-वन">प्रस्तावना<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>हमारे जीवन में एक ऐसा प्रश्न है जो हमेशा से मानव जाति को परेशान करता रहा है &&num;8211&semi; क्या भगवान वास्तव में हर जगह मौजूद हैं&quest; इस लेख में&comma; हम इस गहन विषय पर विचार करेंगे और समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे भगवान की उपस्थिति हमारे चारों ओर और हमारे भीतर महसूस की जा सकती है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भगव-न-क-सर-वव-य-पकत-क-स-द-ध-त">भगवान की सर्वव्यापकता का सिद्धांत<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-ईश-वर-क-न-व-स-हर-ह-दय-म">ईश्वर का निवास&colon; हर हृदय में<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने स्पष्ट रूप से कहा है&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<blockquote class&equals;"wp-block-quote is-layout-flow wp-block-quote-is-layout-flow">&NewLine;<p>&&num;8220&semi;मैं सभी प्राणियों के हृदय में निवास करता हूँ।&&num;8221&semi; &&num;8211&semi; अध्याय 18&comma; श्लोक 61<&sol;p>&NewLine;<&sol;blockquote>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>यह कथन हमें बताता है कि भगवान केवल किसी दूर के स्वर्ग में नहीं&comma; बल्कि हर जीवित प्राणी के अंदर मौजूद हैं। यह विचार हमें एक महत्वपूर्ण सत्य की ओर ले जाता है &&num;8211&semi; हम सभी में दो मूलभूत तत्व हैं&colon; आत्मा और परमात्मा।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-च-तन-क-स-तर-और-भगव-न-क-अन-भव">चेतना के स्तर और भगवान का अनुभव<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भगवान की सर्वव्यापकता को समझने और अनुभव करने के लिए&comma; हमें विभिन्न स्तरों की चेतना को समझना होगा&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li><strong>भौतिक चेतना<&sol;strong>&colon; इस स्तर पर&comma; लोग केवल शारीरिक अंतर देखते हैं और भेदभाव करते हैं।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>उच्च चेतना<&sol;strong>&colon; यहाँ&comma; व्यक्ति सभी को आत्मा के रूप में देखता है&comma; बिना किसी भेदभाव के।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>दिव्य चेतना<&sol;strong>&colon; इस स्तर पर&comma; योगी हर जगह भगवान को देखते हैं&comma; लेकिन संसार से पूरी तरह अलग नहीं होते।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>परमहंस अवस्था<&sol;strong>&colon; यह सबसे उच्च स्तर है&comma; जहाँ केवल भगवान का अनुभव होता है।<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भगव-न-क-द-खन-क-व-भ-न-न-द-ष-ट-क-ण">भगवान को देखने के विभिन्न दृष्टिकोण<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भ-त-क-द-ष-ट-क-ण">भौतिक दृष्टिकोण<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>जो लोग भौतिक चेतना में रहते हैं&comma; वे अक्सर निम्नलिखित तरीके से व्यवहार करते हैं&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ul class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>सभी को शरीर के रूप में देखते हैं<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>जाति&comma; नस्ल&comma; लिंग&comma; आयु और सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार पर भेदभाव करते हैं<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>भगवान की उपस्थिति को महसूस करने में कठिनाई होती है<&sol;li>&NewLine;<&sol;ul>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-आध-य-त-म-क-द-ष-ट-क-ण">आध्यात्मिक दृष्टिकोण<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>उच्च चेतना वाले व्यक्ति एक अलग दृष्टिकोण रखते हैं&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ul class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>सभी को आत्मा के रूप में देखते हैं<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>भेदभाव नहीं करते<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>भगवद्गीता के अनुसार&comma; &&num;8220&semi;विद्वान लोग दिव्य ज्ञान की दृष्टि से ब्राह्मण&comma; गाय&comma; हाथी&comma; कुत्ते और कुत्ते का मांस भक्षण करने वाले चाण्डाल को समान दृष्टि से देखते हैं।&&num;8221&semi; &lpar;अध्याय 5&comma; श्लोक 18&rpar;<&sol;li>&NewLine;<&sol;ul>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-य-ग-य-क-द-ष-ट-क-ण">योगियों का दृष्टिकोण<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>दिव्य चेतना युक्त योगी एक अद्वितीय अनुभव करते हैं&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ul class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>सभी में परमात्मा को देखते हैं<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>संसार का अनुभव करते हैं&comma; लेकिन उसमें उलझते नहीं<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>हंस की तरह होते हैं&comma; जो दूध और पानी के मिश्रण से केवल दूध को अलग कर लेता है<&sol;li>&NewLine;<&sol;ul>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-परमह-स-क-अवस-थ">परमहंस की अवस्था<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>यह सबसे उच्च स्तर की आध्यात्मिक अवस्था है&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ul class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>केवल भगवान को देखते हैं<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>संसार का अनुभव नहीं करते<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>शुकदेव गोस्वामी इस स्तर के उदाहरण हैं&comma; जैसा कि श्रीमद्भागवत में वर्णित है<&sol;li>&NewLine;<&sol;ul>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भगव-न-क-सर-वव-य-पकत-क-महत-व">भगवान की सर्वव्यापकता का महत्व<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भगवान की सर्वव्यापकता को समझने से हमारे जीवन में कई सकारात्मक परिवर्तन आ सकते हैं&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li><strong>एकता की भावना<&sol;strong>&colon; जब हम समझते हैं कि भगवान सभी में मौजूद हैं&comma; तो हम सभी प्राणियों के साथ एकता महसूस करते हैं।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>करुणा का विकास<&sol;strong>&colon; दूसरों में भगवान को देखने से हम अधिक दयालु और करुणामय बनते हैं।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>आंतरिक शांति<&sol;strong>&colon; भगवान की निरंतर उपस्थिति का ज्ञान हमें आंतरिक शांति प्रदान करता है।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>आध्यात्मिक विकास<&sol;strong>&colon; यह समझ हमें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भगव-न-क-सर-वव-य-पकत-क-अन-भव-व-य-वह-र-क-स-झ-व">भगवान की सर्वव्यापकता का अनुभव&colon; व्यावहारिक सुझाव<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भगवान की सर्वव्यापकता का अनुभव करने के लिए कुछ व्यावहारिक सुझाव&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li><strong>ध्यान<&sol;strong>&colon; नियमित ध्यान अभ्यास से आंतरिक शांति और भगवान की उपस्थिति का अनुभव हो सकता है।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>सेवा<&sol;strong>&colon; दूसरों की निःस्वार्थ सेवा से हम उनमें भगवान को देख सकते हैं।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>प्रकृति के साथ जुड़ाव<&sol;strong>&colon; प्रकृति में समय बिताने से हम भगवान की रचना की विशालता और सुंदरता का अनुभव कर सकते हैं।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>आत्म-चिंतन<&sol;strong>&colon; अपने विचारों और कार्यों पर चिंतन करने से हम अपने भीतर भगवान की उपस्थिति को पहचान सकते हैं।<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-न-ष-कर-ष">निष्कर्ष<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भगवान की सर्वव्यापकता एक गहन और जटिल विषय है। यह समझना कि भगवान हर जगह मौजूद हैं &&num;8211&semi; हमारे भीतर&comma; दूसरों में और हमारे चारों ओर की दुनिया में &&num;8211&semi; हमारे जीवन को एक नया अर्थ और उद्देश्य दे सकता है। यह ज्ञान हमें एक अधिक समावेशी&comma; करुणामय और आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए प्रेरित कर सकता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>जैसा कि महान संत कबीरदास ने कहा था&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<blockquote class&equals;"wp-block-quote is-layout-flow wp-block-quote-is-layout-flow">&NewLine;<p>&&num;8220&semi;मोको कहाँ ढूँढे रे बंदे&comma; मैं तो तेरे पास में।<br>ना मैं देवल ना मैं मस्जिद&comma; ना काबे कैलास में।&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;<&sol;blockquote>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इन पंक्तियों का अर्थ है कि भगवान किसी दूर के स्थान पर नहीं हैं&comma; बल्कि हमारे बिल्कुल करीब हैं। वे न तो किसी मंदिर में हैं&comma; न मस्जिद में&comma; न काबा में और न ही कैलाश पर्वत पर। वे हमारे भीतर और हमारे चारों ओर हैं।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अंत में&comma; भगवान की सर्वव्यापकता को समझना और अनुभव करना एक जीवन भर की यात्रा है। यह एक ऐसी यात्रा है जो हमें न केवल भगवान के करीब लाती है&comma; बल्कि हमें अपने आप को और दुनिया को भी बेहतर ढंग से समझने में मदद करती है। इस ज्ञान के साथ&comma; हम एक अधिक सार्थक और संतुष्ट जीवन जी सकते हैं&comma; जो न केवल हमारे लिए&comma; बल्कि पूरी मानवता के लिए लाभदायक होगा।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<div class&equals;"wp-block-buttons is-content-justification-space-between is-layout-flex wp-container-core-buttons-is-layout-3d213aab wp-block-buttons-is-layout-flex">&NewLine;<div class&equals;"wp-block-button"><a class&equals;"wp-block-button&lowbar;&lowbar;link wp-element-button" href&equals;"https&colon;&sol;&sol;sanatanroots&period;com&sol;bhagavad-gita-chapter-6-verse-30&sol;">Previous<&sol;a><&sol;div>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<div class&equals;"wp-block-button"><a class&equals;"wp-block-button&lowbar;&lowbar;link wp-element-button" href&equals;"https&colon;&sol;&sol;sanatanroots&period;com&sol;bhagavad-gita-chapter-6-verse-32&sol;">Next<&sol;a><&sol;div>&NewLine;<&sol;div>&NewLine;

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