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भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 33

&NewLine;<p><strong>अर्जन उवाच।<br>योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन।<br>एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम् ॥33॥<&sol;strong><&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p><audio src&equals;"https&colon;&sol;&sol;www&period;holy-bhagavad-gita&period;org&sol;public&sol;audio&sol;006&lowbar;033&period;mp3"><&sol;audio>अर्जुन उवाच-अर्जुन ने कहा&semi; य&colon;-जिस&semi; अयम्-यह&semi; योग&colon;-योग की पद्धति&semi; त्वया तुम्हारे द्वारा&colon; प्रोक्तः-वर्णित&semi; साम्येन–समानता से&semi; मधुसूदन श्रीकृष्ण&comma; मधु नाम के असुर का संहार करने वाले&semi; एतस्य–इसकी&semi; अहम्-मैं&semi; न-नहीं&semi; पश्यामि-देखता हूँ&semi; चञ्चलत्वात्-बेचैन होने के कारण&semi; स्थितिम्-स्थिति को&semi; स्थिराम्-स्थिर।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p><strong>Hindi translation&colon;&nbsp&semi;<&sol;strong>अर्जुन ने कहा-हे मधुसूदन&excl; आपने जिस योगपद्धति का वर्णन किया वह मेरे लिए अव्यावहारिक और अप्राप्य है क्योंकि मन चंचल है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h1 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भगवद-ग-त-अर-ज-न-क-स-द-ह-और-श-र-क-ष-ण-क-म-र-गदर-शन">भगवद गीता&colon; अर्जुन का संदेह और श्रीकृष्ण का मार्गदर्शन<&sol;h1>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भगवद गीता हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है&comma; जो न केवल आध्यात्मिक ज्ञान का स्रोत है&comma; बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाता है। इस ब्लॉग पोस्ट में&comma; हम भगवद गीता के एक विशेष अंश पर ध्यान केंद्रित करेंगे&comma; जहाँ अर्जुन अपने संदेहों को व्यक्त करता है और श्रीकृष्ण उसे मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-अर-ज-न-क-प-रश-न-य-ग-क-व-य-वह-र-कत">अर्जुन का प्रश्न&colon; योग की व्यावहारिकता<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-अर-ज-न-क-च-त">अर्जुन की चिंता<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अर्जुन&comma; जो कि कुरुक्षेत्र के युद्ध में एक महान योद्धा है&comma; श्रीकृष्ण द्वारा बताए गए योग के मार्ग को लेकर चिंतित है। वह कहता है&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<blockquote class&equals;"wp-block-quote is-layout-flow wp-block-quote-is-layout-flow">&NewLine;<p>&&num;8220&semi;योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन।<br>एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम्॥&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;<&sol;blockquote>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अर्थात्&colon;<br>&&num;8220&semi;हे मधुसूदन &lpar;कृष्ण&rpar;&excl; आपने जो यह समभाव योग बताया है&comma; इसकी स्थिर स्थिति मैं &lpar;मन के&rpar; चंचल होने के कारण नहीं देख पाता हूँ।&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अर्जुन की यह चिंता बहुत वास्तविक और मानवीय है। वह महसूस करता है कि मन को नियंत्रित करना और समभाव में रहना एक कठिन कार्य है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-मन-क-च-चलत-एक-स-र-वभ-म-क-च-न-त">मन की चंचलता&colon; एक सार्वभौमिक चुनौती<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अर्जुन आगे कहता है&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<blockquote class&equals;"wp-block-quote is-layout-flow wp-block-quote-is-layout-flow">&NewLine;<p>&&num;8220&semi;चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।<br>तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्॥&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;<&sol;blockquote>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अर्थात्&colon;<br>&&num;8220&semi;हे कृष्ण&excl; यह मन बड़ा ही चंचल&comma; प्रमथन करने वाला&comma; हठीला और बलवान है। इसलिए इसको वश में करना मैं वायु को रोकने की तरह अत्यन्त दुष्कर मानता हूँ।&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>यहाँ अर्जुन एक ऐसी समस्या को उजागर करता है जो हर व्यक्ति के जीवन में मौजूद है &&num;8211&semi; मन को नियंत्रित करने की कठिनाई। वह मन की तुलना हवा से करता है&comma; जिसे पकड़ना या नियंत्रित करना लगभग असंभव है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-श-र-क-ष-ण-क-म-र-गदर-शन-य-ग-क-स-द-ध-क-ल-ए-आवश-यक-ब-द">श्रीकृष्ण का मार्गदर्शन&colon; योग की सिद्धि के लिए आवश्यक बिंदु<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>श्रीकृष्ण&comma; अर्जुन की चिंताओं को समझते हुए&comma; उसे योग में सिद्धि प्राप्त करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं का मार्गदर्शन देते हैं। आइए इन बिंदुओं को विस्तार से समझें&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-1-इ-द-र-य-क-शमन">1&period; इंद्रियों का शमन<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-इ-द-र-य-क-महत-व-और-उनक-न-य-त-रण">इंद्रियों का महत्व और उनका नियंत्रण<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इंद्रियाँ हमारे शरीर के द्वार हैं जो हमें बाहरी दुनिया से जोड़ती हैं। श्रीकृष्ण का मानना है कि इन इंद्रियों को नियंत्रित करना योग का पहला कदम है। इंद्रियों का शमन का अर्थ है उन्हें संयम में रखना&comma; न कि उनका दमन करना।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-इ-द-र-य-न-य-त-रण-क-ल-भ">इंद्रिय नियंत्रण के लाभ<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>बेहतर एकाग्रता<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>आत्म-जागरूकता में वृद्धि<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>भावनात्मक स्थिरता<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>आध्यात्मिक विकास में सहायता<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-2-सभ-क-मन-ओ-क-त-य-ग">2&period; सभी कामनाओं का त्याग<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-क-मन-ओ-क-प-रक-त">कामनाओं की प्रकृति<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>कामनाएँ मनुष्य के जीवन का एक अभिन्न अंग हैं। हालांकि&comma; अनियंत्रित कामनाएँ दुख और असंतोष का कारण बन सकती हैं।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-क-मन-त-य-ग-क-अर-थ">कामना त्याग का अर्थ<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>कामना त्याग का अर्थ यह नहीं है कि हम अपनी सभी इच्छाओं को छोड़ दें। बल्कि&comma; इसका अर्थ है कि हम अपनी कामनाओं से अनासक्त हो जाएँ।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-क-मन-त-य-ग-क-ल-भ">कामना त्याग के लाभ<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>मानसिक शांति<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>संतोष की भावना<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>आत्म-नियंत्रण में वृद्धि<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>जीवन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-3-मन-क-क-वल-भगव-न-पर-क-द-र-त-करन">3&period; मन को केवल भगवान पर केंद्रित करना<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-एक-ग-रत-क-महत-व">एकाग्रता का महत्व<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>मन को एक बिंदु पर केंद्रित करना योग का मूल सिद्धांत है। श्रीकृष्ण सुझाव देते हैं कि इस बिंदु को भगवान बनाया जाए।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भगव-न-पर-ध-य-न-क-द-र-त-करन-क-तर-क">भगवान पर ध्यान केंद्रित करने के तरीके<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>नियमित प्रार्थना और ध्यान<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>भक्ति संगीत का श्रवण<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>सेवा कार्यों में संलग्नता<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>प्रकृति में समय बिताना<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-इस-अभ-य-स-क-ल-भ">इस अभ्यास के लाभ<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>मानसिक शांति<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>जीवन के प्रति गहरी समझ<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>आध्यात्मिक विकास<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>तनाव में कमी<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-4-स-थ-र-मन-स-भगव-न-क-च-तन-करन">4&period; स्थिर मन से भगवान का चिंतन करना<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-स-थ-र-मन-क-महत-व">स्थिर मन का महत्व<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>स्थिर मन योग की नींव है। यह हमें अपने विचारों और भावनाओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-स-थ-र-मन-प-र-प-त-करन-क-उप-य">स्थिर मन प्राप्त करने के उपाय<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>नियमित ध्यान अभ्यास<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>प्राणायाम &lpar;श्वास नियंत्रण&rpar;<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>योगासन<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>मनन और चिंतन<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-स-थ-र-मन-स-भगव-न-क-च-तन-करन-क-ल-भ">स्थिर मन से भगवान का चिंतन करने के लाभ<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>गहरी आध्यात्मिक अनुभूति<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>जीवन के प्रति नया दृष्टिकोण<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>आंतरिक शांति<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>आत्म-ज्ञान में वृद्धि<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-5-सबक-सम-न-द-ष-ट-स-द-खन">5&period; सबको समान दृष्टि से देखना<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-समद-ष-ट-क-अर-थ">समदृष्टि का अर्थ<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>समदृष्टि का अर्थ है सभी प्राणियों को समान भाव से देखना। यह न केवल मनुष्यों के प्रति&comma; बल्कि सभी जीवों के प्रति समान व्यवहार करने की बात करता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-समद-ष-ट-व-कस-त-करन-क-तर-क">समदृष्टि विकसित करने के तरीके<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>करुणा का अभ्यास<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>दूसरों की परिस्थितियों को समझने का प्रयास<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>अपने पूर्वाग्रहों पर चिंतन<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>सेवा कार्यों में संलग्नता<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-समद-ष-ट-क-ल-भ">समदृष्टि के लाभ<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>सामाजिक सद्भाव में वृद्धि<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>व्यक्तिगत संबंधों में सुधार<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>आत्म-विकास<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>शांतिपूर्ण समाज की स्थापना में योगदान<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-अर-ज-न-क-स-द-ह-मन-क-न-य-त-रण-क-कठ-न-ई">अर्जुन का संदेह&colon; मन के नियंत्रण की कठिनाई<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अर्जुन&comma; श्रीकृष्ण द्वारा बताए गए इन सिद्धांतों को सुनकर&comma; अपना संदेह व्यक्त करता है। वह कहता है कि ये सब सिद्धांत व्यावहारिक रूप से लागू करना बहुत कठिन है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-अर-ज-न-क-च-त-ए">अर्जुन की चिंताएँ<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>मन का अस्थिर स्वभाव<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>इंद्रियों पर नियंत्रण की कठिनाई<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>कामनाओं का त्याग करने में असमर्थता<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>एकाग्रता बनाए रखने की चुनौती<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-मन-क-न-य-त-रण-क-आवश-यकत">मन के नियंत्रण की आवश्यकता<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अर्जुन समझता है कि मन को नियंत्रित किए बिना&comma; योग की किसी भी अवस्था को प्राप्त करना असंभव है। यह एक ऐसी चुनौती है जो न केवल अर्जुन के समय में प्रासंगिक थी&comma; बल्कि आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-श-र-क-ष-ण-क-उत-तर-ध-र-य-और-अभ-य-स-क-महत-व">श्रीकृष्ण का उत्तर&colon; धैर्य और अभ्यास का महत्व<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>श्रीकृष्ण&comma; अर्जुन की चिंताओं को समझते हुए&comma; उसे आश्वस्त करते हैं कि योग का मार्ग कठिन होने के बावजूद&comma; असंभव नहीं है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-श-र-क-ष-ण-क-म-ख-य-ब-द">श्रीकृष्ण के मुख्य बिंदु<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li><strong>निरंतर अभ्यास<&sol;strong>&colon; श्रीकृष्ण बताते हैं कि योग में सफलता पाने के लिए निरंतर अभ्यास आवश्यक है।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>वैराग्य<&sol;strong>&colon; वे कहते हैं कि संसार से अनासक्ति विकसित करना महत्वपूर्ण है।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>धैर्य<&sol;strong>&colon; श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि योग का मार्ग धीरे-धीरे तय होता है&comma; इसलिए धैर्य रखना आवश्यक है।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>दृढ़ संकल्प<&sol;strong>&colon; वे अर्जुन को दृढ़ संकल्प रखने की सलाह देते हैं।<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-य-ग-स-धन-म-सफलत-क-ल-ए-व-य-वह-र-क-स-झ-व">योग साधना में सफलता के लिए व्यावहारिक सुझाव<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<figure class&equals;"wp-block-table"><table class&equals;"has-fixed-layout"><thead><tr><th>क्रम संख्या<&sol;th><th>सुझाव<&sol;th><th>विवरण<&sol;th><&sol;tr><&sol;thead><tbody><tr><td>1<&sol;td><td>नियमित ध्यान<&sol;td><td>प्रतिदिन कुछ समय ध्यान के लिए निर्धारित करें<&sol;td><&sol;tr><tr><td>2<&sol;td><td>स्वस्थ जीवनशैली<&sol;td><td>संतुलित आहार और नियमित व्यायाम करें<&sol;td><&sol;tr><tr><td>3<&sol;td><td>सत्संग<&sol;td><td>अच्छे लोगों की संगति में रहें<&sol;td><&sol;tr><tr><td>4<&sol;td><td>स्वाध्याय<&sol;td><td>नियमित रूप से आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें<&sol;td><&sol;tr><tr><td>5<&sol;td><td>सेवा<&sol;td><td>निःस्वार्थ सेवा में संलग्न रहें<&sol;td><&sol;tr><&sol;tbody><&sol;table><&sol;figure>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-न-ष-कर-ष-य-ग-क-म-र-ग-एक-ज-वनपर-य-त-य-त-र">निष्कर्ष&colon; योग का मार्ग &&num;8211&semi; एक जीवनपर्यंत यात्रा<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भगवद गीता का यह अंश हमें सिखाता है कि योग का मार्ग एक जीवनपर्यंत चलने वाली यात्रा है। यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है&comma; बल्कि जीवन जीने की एक कला भी है। इस यात्रा में कई चुनौतियाँ आती हैं&comma; जैसा कि अर्जुन ने महसूस किया&comma; लेकिन श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन से हम समझ सकते हैं कि ये चुनौतियाँ अपार नहीं हैं।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<div class&equals;"wp-block-buttons is-content-justification-space-between is-layout-flex wp-container-core-buttons-is-layout-3d213aab wp-block-buttons-is-layout-flex">&NewLine;<div class&equals;"wp-block-button"><a class&equals;"wp-block-button&lowbar;&lowbar;link wp-element-button" href&equals;"https&colon;&sol;&sol;sanatanroots&period;com&sol;bhagavad-gita-chapter-6-verse-32&sol;">Previous<&sol;a><&sol;div>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<div class&equals;"wp-block-button"><a class&equals;"wp-block-button&lowbar;&lowbar;link wp-element-button" href&equals;"https&colon;&sol;&sol;sanatanroots&period;com&sol;bhagavad-gita-chapter-6-verse-34&sol;">Next<&sol;a><&sol;div>&NewLine;<&sol;div>&NewLine;

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