
रामायण की कथाएं अनंत हैं और उनमें छिपे अनेक प्रसंग आज भी हमें आश्चर्यचकित करते हैं। सीता के अपहरण की घटना तो सर्वविदित है, परंतु क्या आपने कभी सुना है कि लंकेश्वर रावण ने इससे पूर्व भी एक अपहरण का दुस्साहस किया था? वह भी स्वयं भगवान श्रीराम की माता कौशल्या का!
कौशल्या: एक परिचय
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, कौशल्या का नाम सर्वप्रथम एक ऐसी रानी के रूप में प्रकट होता है जो पुत्र प्राप्ति की आकांक्षी थीं। इसी कामना की पूर्ति के लिए महाराज दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ का आयोजन करवाया था।
कौशल्या, महाराज सकौशल और रानी अमृतप्रभा की सुपुत्री थीं। वे कोशल प्रदेश, जो वर्तमान छत्तीसगढ़ क्षेत्र में स्थित था, की राजकुमारी थीं। उनके स्वयंवर में विभिन्न राज्यों के राजकुमारों को आमंत्रित किया गया था।
दशरथ और सकौशल: शत्रुता से मैत्री तक
एक दिलचस्प तथ्य यह है कि महाराज दशरथ और राजा सकौशल प्रारंभ में परस्पर शत्रु थे। शांति स्थापना के लिए दशरथ ने पहल की, किंतु सकौशल ने इसे अस्वीकार करते हुए युद्ध का आह्वान किया। इस युद्ध में सकौशल की पराजय हुई और विवशतावश उन्हें दशरथ से मित्रता करनी पड़ी।
समय के साथ जब दोनों राजाओं में सद्भाव बढ़ा, तो सकौशल ने अपनी पुत्री कौशल्या का विवाह महाराज दशरथ से कर दिया। विवाहोपरांत दशरथ ने कौशल्या को महारानी का सम्मानित पद प्रदान किया।
रावण और वह अशुभ भविष्यवाणी
आनंद रामायण में एक विशेष कथा का उल्लेख मिलता है। एक दैवीय भविष्यवाणी के अनुसार, कौशल्या के गर्भ से जन्म लेने वाला पुत्र ही रावण के विनाश का कारण बनेगा। स्वयं ब्रह्मदेव ने रावण को यह चेतावनी दी थी कि दशरथ और कौशल्या का पुत्र उसके अंत का निमित्त होगा।
अपनी मृत्यु को टालने के लिए रावण ने एक कुटिल योजना बनाई। महाराज दशरथ और रानी कैकेयी के विवाह के अवसर पर, जब सबका ध्यान उत्सव में था, रावण ने कौशल्या को एक पेटी में बंद कर एक निर्जन द्वीप पर छोड़ दिया।
दशरथ का साहस और कौशल्या का उद्धार
देवर्षि नारद ने दैवीय दृष्टि से रावण के इस कुकृत्य को जान लिया और तत्काल महाराज दशरथ को कौशल्या के स्थान और स्थिति के विषय में सूचित किया।
दशरथ तुरंत अपनी सेना सहित उस द्वीप की ओर प्रस्थान कर गए। रावण की राक्षसी सेना अत्यंत शक्तिशाली थी और युद्ध में दशरथ की सेना को भारी क्षति हुई। परंतु दशरथ ने हार नहीं मानी। एक लकड़ी के तख्ते के सहारे समुद्र में तैरते हुए, वे उस स्थान तक पहुंचे जहां कौशल्या को बंदी बनाकर रखा गया था।
दशरथ ने अपने पराक्रम और दृढ़ संकल्प से कौशल्या को मुक्त कराया और सुरक्षित अयोध्या वापस ले आए।
भाग्य को टाला नहीं जा सकता
रावण ने अपनी मृत्यु को रोकने के लिए श्रीराम के जन्म से पूर्व ही कौशल्या का अपहरण कर लिया था, किंतु भाग्य और ईश्वरीय विधान को कोई नहीं बदल सकता। उसका यह प्रयास विफल रहा। समय आने पर भगवान श्रीराम ने जन्म लिया और अंततः रावण के अहंकार और अत्याचार का अंत किया।
यह प्रसंग हमें यह सिखाता है कि कर्म का फल अवश्यंभावी है और बुराई पर अच्छाई की विजय सुनिश्चित है।
जय सियाराम! 🙏
यह कथा आनंद रामायण और अन्य धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है।
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