अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥16॥
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः॥17॥
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।
सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक् पृथक्॥18॥
अनन्त-विजयम्-अनन्त विजय नाम का शंख; राजा-राजा; कुन्ति-पुत्रः-कुन्ति के पुत्र; युधिष्ठिरः-युधिष्ठिर; नकुलः-नकुलः सहदेवः-सहदेव ने; च–तथा; सुघोष-मणिपुष्पकौ-सुघोष तथा मणिपुष्पक नामक शंख; काश्य:-काशी (वाराणसी) के राजा ने; च-और; परम-ईषु-आस:-महान धनुर्धर; शिखण्डी-शिखण्डी ने; च-भी; महा-रथ:-दस हजार साधारण योद्धाओं से अकेला लड़ने वाला; धृष्टद्युम्नो:-धृष्टद्युम्न ने; विराट:-विराट; च-और; सात्यकिः-सात्यकि; च-तथा; अपराजित:-अजेय; द्रुपदः-द्रुपद, द्रौपदेया:-द्रौपदी के पुत्रों ने; च-भी; सर्वश:-सभी; पृथिवी-पते हे पृथ्वी का राजा; सौभद्रः-सुभद्रा के पुत्र, अभिमन्यु ने; च-भी; महा-बाहुः-विशाल भुजाओं वाला; शड्.खान्–शंख; दध्मुः-बजाए; पृथक-पृथक-अलग-अलग।
Hindi translation : हेपृथ्वीपतिराजन्! राजायुधिष्ठिरनेअपनाअनन्तविजयनामकाशंखबजायातथानकुलऔरसहदेवनेसुघोषएवंमणिपुष्पकनामकशंखबजाये।श्रेष्ठधनुर्धरकाशीराज, महायोद्धाशिखण्डी, धृष्टद्युम्न, विराट, अजेयसात्यकि, द्रुपद, द्रौपदीकेपांचपुत्रोंतथासुभद्राकेमहाबलशालीपुत्रवीरअभिमन्युआदिसबनेअपने-अपनेअलग-अलगशंखबजाये।
महाभारत के आदर्श राजा (शीर्षक)
राजा युधिष्ठिर – न्याय और निष्पक्षता का प्रतीक (उपशीर्षक)
युधिष्ठिर पाण्डवों के सबसे बड़े भाई थे। उन्हें ‘राजा’ कहा गया था क्योंकि उन्होंने राजसूय यज्ञ करके अन्य राजाओं से उपहार और प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। उनके आचरण में सदैव राजसी गरिमा और उदारता देखी जा सकती थी, चाहे वे महलों में रहते थे या वनवास के दौरान वनों में रहते थे।
गुण और विशेषताएं
युधिष्ठिर के गुणों और विशेषताओं में शामिल थे:
- न्याय और निष्पक्षता
- धर्म और नैतिकता का पालन
- शांतिप्रिय और अहिंसक स्वभाव
- उदारता और दयालुता
उन्होंने हमेशा न्याय और निष्पक्षता का पथ अपनाया, भले ही इससे उन्हें कष्ट सहना पड़ा हो।
धृतराष्ट्र – भूमि का शासक लेकिन युद्ध के लिए उत्तरदायी (उपशीर्षक)
धृतराष्ट्र को संजय ने ‘पृथ्वी का राजा’ कहा। इस संबोधन का तात्पर्य था कि देश की रक्षा करना या उसे विनाशकारी युद्धों में उलझाए रखना राजा के हाथों में होता है। संजय के शब्दों से यह संकेत मिलता है कि युद्ध की ओर बढ़ती सेनाओं को वापस बुलाने का निर्णय धृतराष्ट्र को ही लेना था।
धृतराष्ट्र के गुण और दोष
गुणदोषशक्तिशाली शासकपक्षपातपूर्ण व्यवहारराज्य की रक्षा का प्रयासदुर्योधन का समर्थनसेनाओं पर नियंत्रणयुद्ध को रोकने में विफल
धृतराष्ट्र एक शक्तिशाली शासक थे, लेकिन उनका पक्षपातपूर्ण व्यवहार और दुर्योधन का समर्थन करना उनकी बड़ी कमजोरियां थीं।
महाभारत में युधिष्ठिर और धृतराष्ट्र दोनों ही राजा थे, लेकिन उनके शासन के तरीके और निर्णय लेने की क्षमता में काफी अंतर था। युधिष्ठिर न्याय और निष्पक्षता के प्रतीक थे, जबकि धृतराष्ट्र विनाशकारी युद्ध की ओर बढ़ गए।