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भगवद गीता: अध्याय 1, श्लोक 19

स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्।
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन् ॥19॥

https://www.holy-bhagavad-gita.org/public/audio/001_019.mp3सः-उस; घोषः-शब्द ध्वनि; धार्तराष्ट्राणाम् धृतराष्ट्र के पुत्रों के; हृदयानि- हृदयों को; व्यदारयत्-विदीर्ण कर दिया; नभ:-आकाश; च-भी; पृथिवीम्-पृथ्वी को; च-भी; एव-निश्चय ही; तुमुल:-कोलाहलपूर्ण ध्वनि; व्यनुनादयन्–गर्जना करना।

Hindi translation : हेधृतराष्ट्र! इनशंखोंसेउत्पन्नध्वनिद्वाराआकाशऔरधरतीकेबीचहुईगर्जनानेआपकेपुत्रोंकेहृदयोंकोविदीर्णकरदिया

परिचय:

आज हम एक महत्वपूर्ण विषय पर विचार करेंगे – युद्ध और शांति। भगवद्गीता में वर्णित कुरुक्षेत्र का युद्ध इस विषय पर प्रकाश डालता है।

शीर्षक: युद्धक्षेत्र पर संघर्ष और शांति का संदेश

उपशीर्षक: कुरुक्षेत्र युद्ध से प्राप्त अंतर्दृष्टि

पाण्डवों और कौरवों के बीच संघर्ष

युद्ध शुरू होने से पहले, दोनों सेनाओं ने अपनी शक्ति और प्रभाव का प्रदर्शन करने के लिए शंखनाद किया। लेकिन इस शंखनाद का प्रभाव अलग-अलग था।

पाण्डवों की शांति और आत्मविश्वास

कौरवों का भय और अशांति
युद्ध के मैदान पर शांति का संदेश
अंशपाण्डवकौरव
शक्ति का स्रोतभगवान कृष्ण का आशीर्वादस्वयं की शक्ति
मानसिक स्थितिशांत और आत्मविश्वास से भरपूरभय और अशांति
शंखनाद का प्रभावशत्रु सेना पर कोई प्रभाव नहींशत्रु सेना के हृदय विदीर्ण

कुरुक्षेत्र युद्ध से यह संदेश मिलता है कि शांति और न्याय के पक्ष में खड़े होने वालों को भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वे अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। दूसरी ओर, अन्याय और अत्याचार करने वालों में अंतत: भय और अशांति व्याप्त हो जाती है।

निष्कर्ष:

इस प्रकार, युद्ध के मैदान पर भी शांति का संदेश प्रचारित होता है। जो न्याय के पथ पर चलते हैं, उन्हें भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वे अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। अत: हमें भी शांति और न्याय के पथ पर चलना चाहिए।

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