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भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 48

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय ।
सिद्ध्यसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥48॥

https://www.holy-bhagavad-gita.org/public/audio/002_048.mp3योगस्थः-योग में स्थिर होकर; कुरु-करो; कर्मणि-कर्त्तव्यः सङ्गम्-आसक्ति को; त्यक्त्वा-त्याग कर; धनञ्जय-अर्जुन; सिद्धि-असिद्धयोः-सफलता तथा विफलता में; समः-समभाव; भूत्वा-होकर; समत्वम्-समभाव; योग–योग; उच्यते-कहा जाता है।

Hindi translation: हे अर्जुन! सफलता और असफलता की आसक्ति को त्याग कर तुम दृढ़ता से अपने कर्तव्य का पालन करो। यही समभाव योग कहलाता है।

समता का भाव: जीवन की उथल-पुथल में संतुलन का मार्ग

प्रस्तावना

जीवन एक अद्भुत यात्रा है, जिसमें सुख-दुख, उत्थान-पतन, यश-अपयश की लहरें निरंतर आती-जाती रहती हैं। इस अनिश्चितता के समुद्र में संतुलन बनाए रखना ही समता का भाव है। आइए इस गहन विषय को विस्तार से समझें और जानें कि कैसे यह हमारे जीवन को सार्थक बना सकता है।

समता का अर्थ और महत्व

समता क्या है?

समता का भाव वह मानसिक स्थिति है जो हमें सभी परिस्थितियों को शांतिपूर्वक स्वीकार करने योग्य बनाती है। यह जीवन के हर पहलू में संतुलन लाने की कला है।

योग के रूप में समता

भगवान ने समता के भाव को ‘योग’ की संज्ञा दी है – अर्थात भगवान के साथ एकत्व की अवस्था। यह इतना महत्वपूर्ण है कि इसे आध्यात्मिक उन्नति का मूल माना गया है।

समता भाव का विकास

1. प्रयास पर ध्यान, परिणाम पर नहीं

जब हम यह समझ लेते हैं कि प्रयास करना हमारे हाथ में है, लेकिन परिणाम नहीं, तब हम अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं। यह दृष्टिकोण हमें परिणाम की चिंता से मुक्त करता है।

2. फल को भगवान को अर्पण

हमें यह मानना चाहिए कि हमारे कर्मों का फल भगवान के लिए है, न कि हमारे लिए। इस भावना से काम करने पर हम फल की आसक्ति से बच सकते हैं।

3. सफलता-असफलता में समभाव

यश-अपयश, सफलता-असफलता, सुख-दुख – इन सभी को भगवान की इच्छा मानकर स्वीकार करना सीखें। यह दृष्टिकोण हमारे भीतर समभाव विकसित करता है।

जीवन की उथल-पुथल और समता

समुद्र का उदाहरण

जीवन को एक समुद्र यात्रा के रूप में समझा जा सकता है:

समुद्र यात्राजीवन यात्रा
नौकाहमारा अस्तित्व
लहरेंजीवन की चुनौतियाँ
नाविकहमारी आत्मा
किनाराहमारा लक्ष्य

जैसे समुद्र में लहरें स्वाभाविक हैं, वैसे ही जीवन में उतार-चढ़ाव। हमें न तो लहरों से डरना चाहिए, न ही उनके न होने की अपेक्षा करनी चाहिए।

प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना

यदि हम संघर्ष करते हुए प्रतिकूल परिस्थितियों का उन्मूलन करना चाहते हैं, तो हम कष्टों को टालने में असमर्थ होंगे। बजाय इसके, हमें इन कठिनाइयों को भगवान की इच्छा मानकर स्वीकार करना सीखना चाहिए।

समता भाव के लाभ

  1. मानसिक शांति
  2. बेहतर निर्णय क्षमता
  3. तनाव में कमी
  4. आध्यात्मिक उन्नति
  5. संबंधों में सुधार
  6. जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि

समता भाव विकसित करने के उपाय

1. ध्यान और योग

नियमित ध्यान और योगाभ्यास से मन शांत होता है और समता भाव विकसित करने में मदद मिलती है।

2. प्राकृतिक नियमों को समझना

प्रकृति के नियमों को समझें – परिवर्तन ही स्थिर है। इस समझ से जीवन की उथल-पुथल को स्वीकार करना आसान हो जाता है।

3. कृतज्ञता का अभ्यास

हर दिन उन चीजों के लिए कृतज्ञता व्यक्त करें जो आपके पास हैं। यह दृष्टिकोण जीवन के प्रति सकारात्मक भाव पैदा करता है।

4. सेवा भाव

दूसरों की निःस्वार्थ सेवा करें। यह आपको अपने छोटे-छोटे दुखों से ऊपर उठने में मदद करेगी।

5. आत्म-चिंतन

रोज कुछ समय अकेले बिताएं और अपने विचारों और भावनाओं पर चिंतन करें। यह आत्म-जागरूकता बढ़ाता है।

समता भाव के मार्ग में बाधाएँ

  1. अहंकार
  2. आसक्ति
  3. भय
  4. अज्ञान
  5. अधैर्य

इन बाधाओं को पहचानना और उन पर काम करना महत्वपूर्ण है।

समता भाव: एक जीवन शैली

समता भाव को केवल एक विचार या सिद्धांत के रूप में नहीं, बल्कि एक जीवन शैली के रूप में अपनाना चाहिए।

1. कार्यस्थल पर

2. पारिवारिक जीवन में

3. सामाजिक संबंधों में

4. आध्यात्मिक जीवन में

समता भाव के व्यावहारिक उदाहरण

  1. व्यापार में: एक व्यापारी के लिए लाभ और हानि दोनों स्थितियों में समान रहना।
  2. खेल में: एक खिलाड़ी का जीत और हार दोनों परिस्थितियों में संयम बनाए रखना।
  3. शिक्षा में: एक छात्र का अच्छे या बुरे परिणाम पर अति प्रतिक्रिया न देना।
  4. रिश्तों में: दोस्तों या परिवार के सदस्यों के व्यवहार में उतार-चढ़ाव पर धैर्य रखना।

समता भाव का दैनिक अभ्यास

  1. सुबह: दिन की शुरुआत ध्यान या प्रार्थना से करें, जो भी आने वाला है उसे स्वीकार करने का संकल्प लें।
  2. कार्य के दौरान: हर परिस्थिति को सीखने का अवसर मानें, चाहे वह अनुकूल हो या प्रतिकूल।
  3. शाम: दिन भर की घटनाओं पर चिंतन करें, बिना किसी पूर्वाग्रह के उनका विश्लेषण करें।
  4. रात: सोने से पहले कृतज्ञता व्यक्त करें, चाहे दिन कैसा भी रहा हो।

समता भाव और आधुनिक जीवन

आज के तनावपूर्ण जीवन में समता भाव की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है:

  1. डिजिटल युग में: सोशल मीडिया पर दूसरों की सफलता देखकर हताश न हों।
  2. कैरियर में: नौकरी में उतार-चढ़ाव को स्वाभाविक मानें और अपने विकास पर ध्यान दें।
  3. स्वास्थ्य में: बीमारी और स्वास्थ्य दोनों अवस्थाओं में संतुलित रहें।
  4. वित्तीय मामलों में: धन की कमी या अधिकता, दोनों स्थितियों में समभाव रखें।

समता भाव का वैज्ञानिक पहलू

आधुनिक विज्ञान भी समता भाव के महत्व को स्वीकार करता है:

  1. तनाव प्रबंधन: समता भाव तनाव को कम करने में मदद करता है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
  2. निर्णय क्षमता: संतुलित मानसिकता बेहतर निर्णय लेने में सहायक होती है।
  3. मस्तिष्क की प्लास्टिसिटी: नियमित ध्यान और समता अभ्यास से मस्तिष्क की संरचना में सकारात्मक बदलाव आते हैं।

निष्कर्ष

समता का भाव जीवन की उथल-पुथल में एक मजबूत नाव की तरह है। यह हमें न केवल मानसिक शांति प्रदान करता है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की ओर ले जाता है। यह एक ऐसा गुण है जो व्यक्तिगत विकास से लेकर सामाजिक सद्भाव तक, हर स्तर पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

समता भाव को विकसित करना एक निरंतर प्रक्रिया है। यह एक दिन में नहीं आता, बल्कि धीरे-धीरे, लगातार प्रयास और अभ्यास से विकसित होता है। जैसे-जैसे आप इस भाव को अपने जीवन में उतारते जाएंगे, वैसे-वैसे आप पाएंगे कि जीवन की परिस्थितियाँ आपको उतना प्रभावित नहीं करतीं जितना पहले करती थीं।

अंत में, याद रखें कि समता का भाव आपको कमजोर नहीं, बल्कि मजबूत बनाता है। यह आपको जीवन की हर चुनौती का सामना करने की शक्ति देता है। इसलिए, आज से ही इस भाव को अपने जीवन में उतारना शुरू करें और देखें कैसे यह आपके जीवन को बदल देता है। समता का भाव न केवल आपके लिए, बल्कि आपके आस-पास के लोगों के लिए भी एक वरदान साबित होगा।

जीवन एक अनमोल उपहार है, और समता का भाव इस उपहार को सम्मान देने और उसका पूर्ण आनंद लेने का एक शक्तिशाली माध्यम है। इसे अपनाकर, हम न केवल अपने जीवन को समृद्ध बनाते हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी एक प्रेरणा बन जाते हैं। तो आइए, समता के इस मार्ग पर चलें और जीवन के हर पल को उसकी पूर्णता

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