Site icon Sanatan Roots

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 56

दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः ।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥56॥


दुःखेषु-दुखों में; अनुद्वि-ग्रमना:-जिसका मन विचलित नहीं होता; सुखेषु-सुख में; विगत-स्पृहः-बिना लालसा के; वीत-मुक्त; राग-आसक्ति; भय-भय; क्रोधः-क्रोध से; स्थित-धी:-प्रबुद्ध मनुष्य; मुनि:-मुनि; उच्यते-कहलाता है।

Hindi translation: जो मनुष्य किसी प्रकार के दुखों में क्षुब्ध नहीं होता जो सुख की लालसा नहीं करता और जो आसक्ति, भय और क्रोध से मुक्त रहता है, वह स्थिर बुद्धि वाला मनीषी कहलाता है।

स्थिरबुद्धि मनीषी: आध्यात्मिक चेतना की उच्च अवस्था

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्थिरबुद्धि मनीषी की विशेषताओं का वर्णन किया है। आइए इस गहन विषय पर विस्तार से चर्चा करें और समझें कि कैसे एक साधक इस उच्च स्थिति को प्राप्त कर सकता है।

स्थिरबुद्धि मनीषी की प्रमुख विशेषताएँ

श्रीकृष्ण ने स्थिरबुद्धि मनीषी की तीन प्रमुख विशेषताएँ बताई हैं:

  1. वीतराग: सुख की लालसा का त्याग
  2. वीतभय: भय से मुक्ति
  3. वीतक्रोध: क्रोध का अभाव

1. वीतराग: सांसारिक सुखों से अनासक्ति

वीतराग का अर्थ है सांसारिक सुखों और भोगों के प्रति आसक्ति का अभाव। एक स्थिरबुद्धि मनीषी समझता है कि:

वह इन सत्यों को जानकर सांसारिक सुखों के मोह से मुक्त हो जाता है।

2. वीतभय: निर्भीकता की प्राप्ति

भय मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है। स्थिरबुद्धि मनीषी इस कमजोरी से मुक्त हो जाता है क्योंकि:

इस प्रकार वह भय के बंधन से मुक्त हो जाता है।

3. वीतक्रोध: क्रोध पर नियंत्रण

क्रोध मनुष्य की विवेकशक्ति को नष्ट कर देता है। स्थिरबुद्धि मनीषी क्रोध पर विजय पा लेता है क्योंकि:

इस प्रकार वह क्रोध के आवेग से मुक्त हो जाता है।

स्थिरबुद्धि की प्राप्ति का मार्ग

स्थिरबुद्धि की प्राप्ति एक लंबी साधना का परिणाम है। इस मार्ग पर चलने के लिए निम्न बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है:

  1. आत्मचिंतन और आत्मविश्लेषण
  2. योग और ध्यान का अभ्यास
  3. सत्संग और शास्त्र अध्ययन
  4. सेवा और परोपकार
  5. वैराग्य का विकास

आत्मचिंतन और आत्मविश्लेषण

अपने विचारों, भावनाओं और व्यवहार का निरंतर विश्लेषण करना चाहिए। इससे:

योग और ध्यान का अभ्यास

नियमित योग और ध्यान से:

सत्संग और शास्त्र अध्ययन

सत्संग और शास्त्र अध्ययन से:

सेवा और परोपकार

निःस्वार्थ सेवा और परोपकार से:

वैराग्य का विकास

वैराग्य के विकास से:

स्थिरबुद्धि मनीषी के जीवन में संतुलन

स्थिरबुद्धि मनीषी अपने जीवन में संतुलन बनाए रखता है। वह न तो अतिवादी होता है और न ही उदासीन। उसके जीवन में निम्न प्रकार का संतुलन दिखाई देता है:

क्षेत्रसंतुलन
भावनात्मकन अति उत्साह, न निराशा
बौद्धिकशास्त्रज्ञान और व्यावहारिक ज्ञान का समन्वय
आध्यात्मिकसाधना और सेवा का संतुलन
सामाजिकएकांत और सामाजिक जीवन का मेल
भौतिकआवश्यकताओं की पूर्ति, पर अनावश्यक संग्रह नहीं

स्थिरबुद्धि मनीषी का समाज पर प्रभाव

एक स्थिरबुद्धि मनीषी केवल स्वयं के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणास्रोत बनता है। उसका प्रभाव निम्न रूपों में देखा जा सकता है:

  1. मार्गदर्शक के रूप में
  2. शांति और सद्भाव का प्रसार
  3. नैतिक मूल्यों का संरक्षण
  4. ज्ञान और विवेक का प्रकाश

मार्गदर्शक के रूप में

स्थिरबुद्धि मनीषी अपने ज्ञान और अनुभव से दूसरों का मार्गदर्शन करता है। वह:

शांति और सद्भाव का प्रसार

अपने आचरण से वह समाज में शांति और सद्भाव का संदेश फैलाता है। वह:

नैतिक मूल्यों का संरक्षण

वर्तमान समय में जब नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है, स्थिरबुद्धि मनीषी:

ज्ञान और विवेक का प्रकाश

अपने ज्ञान और विवेक से वह समाज के अंधकार को दूर करता है। वह:

निष्कर्ष

स्थिरबुद्धि मनीषी की अवस्था प्राप्त करना जीवन का एक उच्च लक्ष्य है। यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ मनुष्य सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठकर आत्मज्ञान की ऊँचाइयों को छूता है। यह मार्ग कठिन है, परंतु असंभव नहीं। नियमित अभ्यास, दृढ़ संकल्प और गुरु के मार्गदर्शन से कोई भी इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।

स्थिरबुद्धि मनीषी न केवल स्वयं के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक वरदान है। उसका जीवन दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनता है और वह अपने आचरण से समाज को एक नई दिशा देता है। इसलिए हमें भी अपने जीवन में इन गुणों को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए, ताकि हम न केवल अपना, बल्कि पूरे समाज का कल्याण कर सकें।

Exit mobile version