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भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 68

तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥68॥


तस्मात्-इसलिए; यस्य–जिसकी; महाबाहो-महाबलशाली; निगृहीतानि-विरक्त; सर्वशः-सब प्रकार से; इन्द्रियाणि-इन्द्रियाँ इन्द्रिय-अर्थेभ्यः-इन्द्रिय विषयों से; तस्य-उस व्यक्ति की; प्रज्ञा-दिव्य ज्ञान; प्रतिष्ठिता-स्थिर रहना।

Hindi translation:
इसलिए हे महाबाहु। जो मनुष्य इन्द्रियों के विषय भोगों से विरक्त रहता है, वह दृढ़ता से लोकातीत ज्ञान से युक्त हो जाता है।

आत्मा की प्रबुद्धता: इंद्रियों और मन पर नियंत्रण का मार्ग

प्रस्तावना

आज के भौतिकवादी युग में, हम अक्सर अपने आंतरिक संतुलन को खो देते हैं। हमारी इंद्रियाँ हमें विभिन्न दिशाओं में खींचती हैं, और हमारा मन अशांत रहता है। इस परिस्थिति में, श्रीकृष्ण के वचन हमें एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। आइए इस गहन विषय को विस्तार से समझें।

प्रबुद्ध आत्मा का महत्व

लोकातीत ज्ञान का प्रभाव

प्रबुद्ध आत्माएँ लोकातीत अर्थात दिव्य ज्ञान से परिपूर्ण होती हैं। यह ज्ञान उन्हें सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठाता है। इसके परिणामस्वरूप:

  1. बुद्धि का नियंत्रण: दिव्य ज्ञान बुद्धि को शुद्ध और निर्मल बनाता है।
  2. मन का संयम: शुद्ध बुद्धि मन को नियंत्रित करने में सक्षम होती है।
  3. इंद्रियों पर अंकुश: नियंत्रित मन इंद्रियों को वश में रखता है।

सांसारिक अवस्था का विपरीत प्रभाव

जब हम आध्यात्मिक मार्ग से भटक जाते हैं, तो परिणाम विपरीत होते हैं:

  1. इंद्रियों का प्रभुत्व: हमारी इंद्रियाँ हमें विभिन्न विषय-वासनाओं की ओर आकर्षित करती हैं।
  2. मन की अस्थिरता: इंद्रियों के प्रभाव में मन अशांत और चंचल हो जाता है।
  3. बुद्धि का भ्रम: अस्थिर मन बुद्धि को भ्रमित कर देता है, जिससे वह सही और गलत का भेद नहीं कर पाती।

आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग

बुद्धि को दिव्य बनाना

श्रीकृष्ण के अनुसार, आध्यात्मिक उन्नति का प्रथम चरण है बुद्धि को दिव्य ज्ञान से परिपूर्ण करना। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

  1. स्वाध्याय: नियमित रूप से आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें।
  2. सत्संग: ज्ञानी और प्रबुद्ध व्यक्तियों के साथ समय व्यतीत करें।
  3. ध्यान: नियमित ध्यान अभ्यास से मन और बुद्धि शुद्ध होती है।

इंद्रियों पर नियंत्रण

जब बुद्धि दिव्य हो जाती है, तो इंद्रियों पर नियंत्रण स्वाभाविक रूप से आता है। फिर भी, निम्नलिखित अभ्यास सहायक हो सकते हैं:

  1. प्राणायाम: श्वास नियंत्रण से मन शांत होता है।
  2. आसन: योगासन शरीर और मन को संतुलित करते हैं।
  3. संयम: इंद्रिय-तृप्ति पर नियंत्रण रखें।

बुद्धि का स्थिरीकरण

इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त करने के बाद, बुद्धि को स्थिर रखना महत्वपूर्ण है। इसके लिए:

  1. निष्काम कर्म: फल की इच्छा छोड़कर कर्तव्य का पालन करें।
  2. भक्ति: ईश्वर के प्रति समर्पण भाव रखें।
  3. वैराग्य: अनावश्यक वस्तुओं और विचारों से मुक्त रहें।

आध्यात्मिक उन्नति का चक्र

निम्नलिखित तालिका आध्यात्मिक उन्नति के चक्र को दर्शाती है:

चरणप्रक्रियापरिणाम
1दिव्य ज्ञान प्राप्तिबुद्धि का शुद्धिकरण
2शुद्ध बुद्धि द्वारा मन नियंत्रणमन की स्थिरता
3स्थिर मन द्वारा इंद्रिय नियंत्रणइंद्रियों का संयम
4इंद्रिय संयम से बुद्धि की स्थिरताआत्म-साक्षात्कार

निष्कर्ष

श्रीकृष्ण के वचनों में छिपा यह गहन ज्ञान हमें सिखाता है कि आध्यात्मिक उन्नति एक चक्रीय प्रक्रिया है। दिव्य ज्ञान से प्रारंभ होकर, यह प्रक्रिया बुद्धि, मन और इंद्रियों के माध्यम से हमें आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाती है। यह मार्ग कठिन हो सकता है, लेकिन धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ, हम निश्चित रूप से इस पर आगे बढ़ सकते हैं।

अंत में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह यात्रा एक दिन में पूरी नहीं होती। यह एक जीवनपर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है, जिसमें हमें लगातार अपने आप को सुधारना और परिष्कृत करना होता है। जैसे-जैसे हम इस मार्ग पर आगे बढ़ते हैं, हम पाते हैं कि हमारा जीवन अधिक संतुलित, शांतिपूर्ण और आनंदमय हो जाता है।

इसलिए, आइए हम सब मिलकर इस आध्यात्मिक यात्रा पर चलें, जहाँ हम अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करें, अपने मन को शांत करें, और अपनी बुद्धि को दिव्य ज्ञान से प्रकाशित करें। यही वह मार्ग है जो हमें सच्चे आनंद और शांति की ओर ले जाएगा, जो हमारे जीवन का परम लक्ष्य है।

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