या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥69॥
या-जिसे; निशा-रात्रि; सर्व-सब; भूतानाम्-सभी जीवः तस्याम्-उसमें; जागर्ति-जागता रहता है; संयमी-आत्मसंयमी; यस्याम्-जिसमें; जाग्रति-जागते हैं; भूतानि–सभी जीव; सा-वह; निशा–रात्रि; पश्यतः-देखना; मुनेः-मुनि।
Hindi translation: जिसे सब लोग दिन समझते हैं वह आत्मसंयमी के लिए अज्ञानता की रात्रि है तथा जो सब जीवों के लिए रात्रि है, वह आत्मविश्लेषी मुनियों के लिए दिन है।
श्रीकृष्ण की दृष्टि में दिन और रात: एक आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य
प्रस्तावना
भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन ज्ञान प्रदान किया है। उनके द्वारा दिए गए उपदेशों में से एक महत्वपूर्ण शिक्षा है दिन और रात का प्रतीकात्मक अर्थ। इस ब्लॉग में हम इस विषय को गहराई से समझने का प्रयास करेंगे।
श्रीकृष्ण का दृष्टिकोण
दिन और रात का प्रतीकात्मक अर्थ
श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में कहा है:
“या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः॥”
इसका अर्थ है:
“जो सभी प्राणियों के लिए रात है, उस समय संयमी जागता है। और जब सभी प्राणी जागते हैं, वह ज्ञानी मुनि के लिए रात होती है।”
श्रीकृष्ण के शब्दों का वास्तविक अर्थ
श्रीकृष्ण यहाँ दिन और रात का प्रयोग प्रतीकात्मक रूप में कर रहे हैं। वे हमें बता रहे हैं कि:
- सांसारिक लोगों के लिए ‘दिन’ क्या है:
- भौतिक सुख
- इंद्रियों की तृप्ति
- लौकिक उपलब्धियाँ
- आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए ‘दिन’ क्या है:
- आत्मज्ञान की प्राप्ति
- इंद्रियों पर नियंत्रण
- आत्मोन्नति
लोगों द्वारा की जाने वाली गलत व्याख्या
‘खड़े श्री बाबा’ का उदाहरण
एक समय की बात है, एक तपस्वी थे जिन्हें ‘खड़े श्री बाबा’ के नाम से जाना जाता था। उनकी विशेषता थी:
- 35 वर्षों तक न सोना
- एक टांग पर खड़े रहना
- रस्सी का सहारा लेकर विश्राम करना
बाबा का दृष्टिकोण
बाबा ने अपनी तपस्या का कारण बताते हुए श्रीकृष्ण के उपरोक्त श्लोक का हवाला दिया। उन्होंने इसे शाब्दिक अर्थ में लिया और रात को जागने का व्रत ले लिया।
इस व्याख्या के परिणाम
- शारीरिक कष्ट:
- पैरों और टांगों में सूजन
- शारीरिक गतिविधियों में बाधा
- आध्यात्मिक प्रगति का अभाव:
- केवल शारीरिक कष्ट पर ध्यान
- आत्मज्ञान की उपेक्षा
श्लोक की सही व्याख्या
सांसारिक लोगों का दृष्टिकोण
सांसारिक लोगों के लिए ‘दिन’ | सांसारिक लोगों के लिए ‘रात’ |
---|---|
भौतिक सुख | भौतिक सुख का अभाव |
इंद्रिय तृप्ति | इंद्रिय वंचना |
लौकिक सफलता | लौकिक असफलता |
आध्यात्मिक व्यक्ति का दृष्टिकोण
आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए ‘दिन’ | आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए ‘रात’ |
---|---|
आत्मज्ञान | अज्ञान |
इंद्रिय नियंत्रण | इंद्रिय लोलुपता |
आत्मोन्नति | आत्मपतन |
श्रीकृष्ण के उपदेश का सार
सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन का अंतर
श्रीकृष्ण हमें बता रहे हैं कि सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन में मूलभूत अंतर है:
- सांसारिक जीवन:
- बाहरी संसार पर केंद्रित
- क्षणिक सुख की खोज
- भौतिक उपलब्धियों को महत्व
- आध्यात्मिक जीवन:
- आंतरिक जगत की खोज
- स्थायी आनंद की प्राप्ति
- आत्मज्ञान को सर्वोच्च महत्व
जीवन के प्रति नया दृष्टिकोण
श्रीकृष्ण हमें एक नया दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं:
- इंद्रियों के विषय भोगों को ‘रात्रि’ के रूप में देखना
- आत्मोन्नति के मार्ग को ‘दिन’ के रूप में स्वीकार करना
- बाहरी जगत से अधिक आंतरिक जगत पर ध्यान देना
आधुनिक जीवन में श्रीकृष्ण के उपदेश का महत्व
वर्तमान समय की चुनौतियाँ
आज के समय में हम कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं:
- भौतिकवादी संस्कृति
- तनाव और अवसाद
- जीवन के उद्देश्य की खोज
श्रीकृष्ण के उपदेश की प्रासंगिकता
इन चुनौतियों के समाधान में श्रीकृष्ण के उपदेश बहुत महत्वपूर्ण हो सकते हैं:
- जीवन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण
- आत्मचिंतन और आत्मविकास पर ध्यान
- स्थायी सुख और शांति की प्राप्ति
निष्कर्ष
श्रीकृष्ण के उपदेश हमें सिखाते हैं कि जीवन को केवल बाहरी परिस्थितियों के आधार पर नहीं, बल्कि आंतरिक विकास के दृष्टिकोण से देखना चाहिए। उनके शब्दों में ‘दिन’ और ‘रात’ का प्रतीकात्मक अर्थ हमें एक नया जीवन दर्शन प्रदान करता है। यह हमें याद दिलाता है कि सच्चा सुख और शांति बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर है।
आज के भागदौड़ भरे जीवन में, श्रीकृष्ण का यह उपदेश हमें अपने जीवन के उद्देश्य पर फिर से विचार करने और आत्मोन्नति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। यह हमें सिखाता है कि सच्चा ज्ञानी वह है जो बाहरी चमक-दमक से प्रभावित न होकर, आंतरिक प्रकाश की ओर बढ़ता है।
अंत में, यह कहा जा सकता है कि श्रीकृष्ण के इस उपदेश को समझना और जीवन में उतारना, वास्तव में अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का मार्ग है। यह हमें एक ऐसा जीवन जीने की प्रेरणा देता है, जहाँ हम न केवल अपने लिए, बल्कि समाज और संपूर्ण मानवता के लिए ‘जागृत’ रहें।