Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 18

कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः।
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् ॥18॥


कर्मणि-कर्म; अकर्म-निष्क्रिय होना; यः-जो; पश्येत्-देखता है; अकर्मणि-अकर्म में; च-और; कर्म-कर्म; यः-जो; सः-वे; बुद्धिमान्–बुद्धिमान् है; मनुष्येषु-मनुष्यों में; सः-वे; युक्त:-योगी; कृत्स्न-कर्म-कृत्-सभी प्रकार के कर्मों को सम्पन्न करना।

Hindi translation: वे मनुष्य जो अकर्म में कर्म और कर्म में अकर्म को देखते हैं। वे सभी मनुष्यों में बुद्धिमान होते हैं। सभी प्रकार के कर्मों में प्रवृत्त रहकर भी वे योगी कहलाते हैं और अपने सभी कर्मों में पारंगत होते हैं।

कर्म और अकर्म: जीवन जीने की कला

प्रस्तावना

हमारे जीवन में कर्म का महत्वपूर्ण स्थान है। हर क्षण हम कुछ न कुछ कर रहे होते हैं – चाहे वह सोचना हो, बोलना हो या कोई शारीरिक गतिविधि। लेकिन क्या हम वास्तव में समझते हैं कि कर्म का क्या अर्थ है? और क्या ऐसा कोई तरीका है जिससे हम कर्म करते हुए भी अकर्म की स्थिति में रह सकते हैं? आइए इस गहन विषय को समझने का प्रयास करें।

कर्म क्या है?

कर्म शब्द संस्कृत भाषा से आया है, जिसका अर्थ है ‘कार्य’ या ‘क्रिया’। लेकिन भारतीय दर्शन में कर्म का अर्थ केवल भौतिक क्रियाओं तक सीमित नहीं है। यह हमारे विचारों, भावनाओं और इरादों को भी शामिल करता है।

कर्म के प्रकार

  1. काय कर्म: शारीरिक गतिविधियाँ
  2. वाक् कर्म: वाणी से किए जाने वाले कर्म
  3. मानस कर्म: मन से किए जाने वाले कर्म

अकर्म की अवधारणा

अकर्म का शाब्दिक अर्थ है ‘कर्म का अभाव’। लेकिन क्या वास्तव में कोई व्यक्ति बिना कुछ किए रह सकता है? भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह असंभव है। फिर अकर्म का वास्तविक अर्थ क्या है?

अकर्म के दो पहलू

  1. अकर्म में कर्म: कर्तव्यों की उपेक्षा
  2. कर्म में अकर्म: निष्काम कर्म

अकर्म में कर्म: एक खतरनाक भ्रम

कई लोग सोचते हैं कि अगर वे कुछ न करें तो वे कर्म के बंधन से मुक्त हो जाएंगे। लेकिन यह एक बड़ा भ्रम है। जब कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से निष्क्रिय रहता है, तब भी उसका मन सक्रिय रहता है। वह विषयों के बारे में सोचता रहता है, इच्छाएँ करता रहता है।

अकर्म में कर्म के परिणाम

  1. मानसिक अशांति
  2. समाज के प्रति उत्तरदायित्व की उपेक्षा
  3. आध्यात्मिक प्रगति में बाधा

कर्म में अकर्म: जीवन जीने की कला

कर्म में अकर्म का अर्थ है कर्म करते हुए भी कर्म के बंधन से मुक्त रहना। यह कैसे संभव है? इसके लिए हमें कर्मयोग को समझना होगा।

कर्मयोग के सिद्धांत

  1. निष्काम कर्म: बिना फल की इच्छा के कर्म करना
  2. कर्तव्य भावना: अपने दायित्वों को समझना और उन्हें पूरा करना
  3. समर्पण: अपने कर्मों को ईश्वर को समर्पित करना

कर्मयोग का अभ्यास: व्यावहारिक सुझाव

  1. प्राथमिकताएँ तय करें: अपने जीवन के लक्ष्यों और मूल्यों को पहचानें।
  2. मन को शांत रखें: ध्यान और प्राणायाम का अभ्यास करें।
  3. सेवा भाव रखें: दूसरों की मदद करने का प्रयास करें।
  4. आत्म-चिंतन करें: अपने कर्मों और उनके परिणामों पर विचार करें।
  5. संतुलन बनाए रखें: काम और विश्राम में संतुलन बनाए रखें।

कर्मयोग और आधुनिक जीवन

आज के तनावपूर्ण जीवन में कर्मयोग की अवधारणा बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। यह हमें सिखाती है कि कैसे हम अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भी मानसिक शांति प्राप्त कर सकते हैं।

कर्मयोग के लाभ

क्षेत्रलाभ
व्यक्तिगततनाव में कमी, बेहतर स्वास्थ्य
पेशेवरउत्पादकता में वृद्धि, बेहतर कार्य संतुष्टि
सामाजिकबेहतर संबंध, समाज में योगदान
आध्यात्मिकआत्म-ज्ञान, आंतरिक शांति

ऐतिहासिक उदाहरण: कर्म में अकर्म

भारतीय इतिहास में ऐसे कई महापुरुष हुए हैं जिन्होंने कर्म में अकर्म के सिद्धांत को अपने जीवन में उतारा।

  1. महात्मा गांधी: स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए देश की सेवा की।
  2. स्वामी विवेकानंद: उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सेवा और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार में लगा दिया।
  3. भगत सिंह: देश की आजादी के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, लेकिन उनके मन में किसी के प्रति द्वेष नहीं था।

कर्मयोग की चुनौतियाँ

कर्मयोग का मार्ग आसान नहीं है। इस पर चलते हुए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:

  1. फल की इच्छा: मनुष्य स्वभाव से ही फल प्राप्ति की इच्छा रखता है।
  2. अहंकार: अपने कर्मों पर गर्व महसूस करना।
  3. निराशा: जब परिणाम अपेक्षा के अनुरूप न हों।
  4. असफलता का भय: नए कार्य शुरू करने में हिचकिचाहट।

इन चुनौतियों से पार पाने के लिए लगातार अभ्यास और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है।

कर्मयोग और आधुनिक मनोविज्ञान

आधुनिक मनोविज्ञान भी कर्मयोग के सिद्धांतों की पुष्टि करता है। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि जो लोग अपने काम को एक मिशन के रूप में देखते हैं और दूसरों की सेवा के लिए करते हैं, वे अधिक संतुष्ट और खुश रहते हैं।

मनोवैज्ञानिक लाभ

  1. तनाव में कमी: जब हम परिणामों से अनासक्त होकर काम करते हैं, तो तनाव कम होता है।
  2. आत्मसम्मान में वृद्धि: अपने कर्तव्यों का पालन करने से आत्मसम्मान बढ़ता है।
  3. बेहतर संबंध: दूसरों की सेवा करने से रिश्ते मजबूत होते हैं।
  4. जीवन का उद्देश्य: कर्मयोग जीवन को एक दिशा और उद्देश्य प्रदान करता है।

कर्मयोग का व्यावहारिक अभ्यास

कर्मयोग को अपने दैनिक जीवन में कैसे उतारा जा सकता है? यहाँ कुछ व्यावहारिक सुझाव दिए गए हैं:

  1. सुबह की शुरुआत: दिन की शुरुआत ध्यान या प्रार्थना से करें। अपने दिन को ईश्वर को समर्पित करें।
  2. काम के दौरान: हर काम को पूरी एकाग्रता और समर्पण भाव से करें। परिणाम की चिंता न करें।
  3. परिवार और समाज: अपने परिवार और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को प्रेम और सेवा भाव से पूरा करें।
  4. चुनौतियों का सामना: कठिनाइयों को अपनी आध्यात्मिक वृद्धि का अवसर समझें।
  5. दिन का समापन: रात को सोने से पहले अपने दिन भर के कर्मों पर चिंतन करें। आत्म-मूल्यांकन करें और सुधार के लिए संकल्प लें।

निष्कर्ष

कर्म और अकर्म की यह गहन अवधारणा हमें सिखाती है कि जीवन में संतुलन कैसे बनाया जाए। न तो हमें कर्म से भागना चाहिए और न ही उसमें इतना डूब जाना चाहिए कि हम अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाएं।

कर्मयोग का मार्ग हमें सिखाता है कि कैसे हम इस संसार में रहते हुए, अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भी आंतरिक शांति और आनंद प्राप्त कर सकते हैं। यह एक ऐसी जीवन शैली है जो हमें न केवल व्यक्तिगत विकास की ओर ले जाती है, बल्कि समाज और विश्व के कल्याण में भी योगदान देने में सक्षम बनाती है।

अंत में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि कर्मयोग एक लंबी यात्रा है। इसे एक दिन में नहीं सीखा जा सकता। यह निरंतर अभ्यास, धैर्य और दृढ़ संकल्प की मांग करता है। लेकिन जो इस मार्ग पर चलते हैं, वे अंततः जीवन के सच्चे अर्थ और उद्देश्य को पा लेते हैं।

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