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भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 22

यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः ।
यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरूणापि विचाल्यते ॥22॥


यम्-जिसे; लब्ध्वा–प्राप्त कर; च और; अपरम्-अन्य कोई; लाभम् लाभ; मन्यते–मानता है; न–कभी नहीं; अधिकम्-अधिक; ततः-उससे; यस्मिन्-जिसमें; स्थित:-स्थित होकर; न कभी नहीं; दुःखेन-दुखों से; गुरूणा-बड़ी; अपि-से; विचाल्यते-विचलित होना;

Hindi translation: ऐसी अवस्था प्राप्त कर कोई और कुछ श्रेष्ठ पाने की इच्छा नहीं करता। ऐसी सिद्धि प्राप्त कर कोई मनुष्य बड़ी से बड़ी आपदाओं में विचलित नहीं होता।

योग: असीम सुख और आत्मिक संतुष्टि का मार्ग

भौतिक जगत में हम अक्सर अपने आप को असंतुष्ट और अतृप्त पाते हैं। चाहे हम कितनी भी सफलता या समृद्धि प्राप्त कर लें, हमेशा कुछ और पाने की लालसा बनी रहती है। लेकिन क्या यह मानवीय स्वभाव का अनिवार्य हिस्सा है? या फिर कोई ऐसा मार्ग है जो हमें वास्तविक संतुष्टि और शांति की ओर ले जा सकता है? आइए इस विषय पर गहराई से विचार करें और समझें कि योग किस प्रकार हमें असीम सुख और आत्मिक संतोष की ओर ले जा सकता है।

भौतिक सुख की सीमाएँ

धन और सुख का भ्रम

हमारे समाज में एक आम धारणा है कि धन और भौतिक संपत्ति हमें सुख और संतोष प्रदान करेंगे। लेकिन वास्तविकता कुछ और ही बताती है:

सामाजिक प्रतिष्ठा और मान्यता

केवल धन ही नहीं, बल्कि सामाजिक स्थिति और मान्यता भी हमें स्थायी संतोष नहीं दे पाती:

योग: एक नया दृष्टिकोण

योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं है। यह जीवन जीने का एक तरीका है जो हमें अपने वास्तविक स्वरूप से जोड़ता है।

योग का अर्थ और महत्व

योग से प्राप्त होने वाला असीम सुख

योग की अवस्था में प्राप्त होने वाला सुख भौतिक सुख से कहीं अधिक गहरा और स्थायी होता है:

  1. परम संतुष्टि: योग से प्राप्त आनंद इतना पूर्ण होता है कि इससे बढ़कर कुछ और पाने की इच्छा नहीं रहती।
  2. शाश्वत आनंद: यह सुख क्षणिक नहीं, बल्कि स्थायी होता है। एक बार प्राप्त होने के बाद यह कभी नहीं छूटता।
  3. आंतरिक शांति: बाहरी परिस्थितियों से स्वतंत्र, यह सुख हमारे भीतर से उत्पन्न होता है।
  4. उच्च चेतना: योग हमें एक उच्च चेतना की अवस्था में ले जाता है, जहाँ हम अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानते हैं।

योग का व्यावहारिक प्रभाव

योग केवल एक सैद्धांतिक अवधारणा नहीं है। इसके व्यावहारिक लाभ हमारे दैनिक जीवन में स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं।

दैनिक जीवन में बदलाव

  1. तनाव में कमी: नियमित योगाभ्यास से शरीर में कॉर्टिसोल (तनाव हार्मोन) का स्तर कम होता है।
  2. बेहतर स्वास्थ्य: योग न केवल शारीरिक लचीलापन बढ़ाता है, बल्कि रक्तचाप, हृदय रोग और मधुमेह जैसी बीमारियों के जोखिम को भी कम करता है।
  3. मानसिक स्पष्टता: ध्यान और प्राणायाम से मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ती है, जिससे निर्णय लेने की क्षमता और एकाग्रता में सुधार होता है।
  4. बेहतर संबंध: आत्म-जागरूकता बढ़ने से हम दूसरों के साथ अधिक सहानुभूति और समझ के साथ व्यवहार करते हैं।

आध्यात्मिक विकास

योग हमारे आध्यात्मिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है:

योग और जीवन की चुनौतियाँ

जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं जो हमें विचलित कर सकती हैं। लेकिन योग हमें इन चुनौतियों का सामना करने की शक्ति देता है।

कठिनाइयों में स्थिरता

योग का अभ्यास करने वाले व्यक्ति जीवन की कठिनाइयों में भी अपनी मानसिक शांति बनाए रखते हैं:

प्राचीन उदाहरण

हमारे पुराणों में ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ भक्तों ने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी भक्ति और आस्था नहीं छोड़ी:

  1. प्रह्लाद: हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रह्लाद को अनेक यातनाएँ दी गईं, लेकिन वे अपनी भक्ति पर अडिग रहे।
  2. द्रौपदी: महाभारत में द्रौपदी ने अनेक कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन कृष्ण पर उनकी श्रद्धा कभी कम नहीं हुई।
  3. मीराबाई: राजघराने की होने के बावजूद मीराबाई ने अनेक कष्ट सहे, लेकिन कृष्ण-भक्ति नहीं छोड़ी।

योग का वर्तमान परिदृश्य

आज के तनावपूर्ण जीवन में योग की प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है।

वैश्विक स्वीकृति

योग अब केवल भारत तक सीमित नहीं है:

आधुनिक जीवनशैली में योग का महत्व

समस्यायोग का समाधान
तनाव और चिंताध्यान और प्राणायाम से मानसिक शांति
शारीरिक अकड़नआसनों से लचीलापन और मजबूती
नींद की समस्याएँयोग निद्रा से बेहतर नींद
कम एकाग्रताध्यान से बढ़ी हुई एकाग्रता शक्ति
जीवनशैली से जुड़ी बीमारियाँनियमित योगाभ्यास से बेहतर स्वास्थ्य

निष्कर्ष: योग – जीवन का मार्ग

योग केवल एक शारीरिक व्यायाम या मानसिक अभ्यास नहीं है। यह एक जीवन पद्धति है जो हमें अपने वास्तविक स्वरूप से जोड़ती है और असीम सुख की ओर ले जाती है। भौतिक संसार में हम चाहे कितनी भी उपलब्धियाँ हासिल कर लें, वास्तविक संतुष्टि हमें तभी मिलेगी जब हम अपने आंतरिक सत्य को पहचान लेंगे।

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